एक शिक्षण संस्थान के किसी अन्य छात्र के खिलाफ एक छात्र द्वारा किये गये किसी भी शारीरिक, मौखिक या मानसिक दुर्व्यवहार को रैगिंग कहते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सा छात्र इसे करता है या किस छात्र के साथ यह दुर्व्यवहार किया जाता है (यह एक फ्रेशर / नवागत हो सकता है या एक वरिष्ठ भी हो सकता है)-हर हाल में यह एक रैगिंग का अपराध है। रैगिंग कई कारणों से हो सकती है, जैसे आपकी त्वचा, नस्ल, धर्म, जाति, प्रजातीयता, जेंडर, यौनिक रुझान, रूप-रंग, राष्ट्रीयता, क्षेत्रीय मूल, आपकी बोली, जन्म स्थान, गृह स्थान या आर्थिक पृष्ठभूमि के कारण।
रैगिंग कई अलग-अलग रूप ले सकती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र किसी अन्य छात्र को उसके काम करने के लिए धौंस दिखाता है या किसी छात्र को कॉलेज समारोह जैसी परिसर की गतिविधियों से बाहर रखा जाता है, तो उसे रैगिंग माना जाता है।
मानसिक चोट, शारीरिक दुर्व्यवहार, भेदभाव, शैक्षणिक गतिविधि में व्यवधान आदि सहित छात्रों के खिलाफ रैगिंग के विभिन्न रूपों को कानून, दंडित करता है।
रैगिंग पर कानून
रैगिंग पर कानून को उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने के लिए यूजीसी विनियमन, 2009 के बतौर जाना जाता है। यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 द्वारा मान्यता प्राप्त, केंद्र सरकार द्वारा घोषित संस्थानों समेत उच्चतर अध्ययन के सभी शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग को प्रतिबंधित करता है। इन सब संस्थानों के भीतर, रैगिंग इस प्रकार से निषिद्ध है-
रैगिंग पर कुछ शिक्षण संस्थानों के अपने नियम हैं। उदाहरण के लिए, ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के पास रैगिंग पर दिशानिर्देशों की अपनी एक नियमावली है।
राज्य के कानून
कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में रैगिंग को प्रतिबंधित करने व रोकने के लिहाज़ से विभिन्न राज्यों ने कानून पारित किये हैं, जो केवल उन संबंधित राज्यों में ही लागू होते हैं। ये राज्य हैं आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़, त्रिपुरा, आदि।
रैगिंग के लिए सज़ा
यदि कोई छात्र रैगिंग में लिप्त पाया जाता है, तो उसे या तो संस्थागत स्तर पर दंडित किया जा सकता है (उदाहरण के लिए, निलंबन द्वारा) या उसके खिलाफ पुलिस मामला दर्ज कर; भारतीय दंड संहिता, 1860 का उपयोग रैगिंग के अपराध को दंडित करने के लिए किया जा सकता है। आगे और पढ़ें
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